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लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले अपनी ख़ुशी न आए न अपनी ख़ुशी चले हो उम्र-ए-ख़िज़्र भी तो हो मालूम वक़्त-ए-मर्ग हम क्या रहे यहाँ अभी आए अभी चले हम से भी इस बिसात पे कम होंगे बद-क़िमार जो चाल हम चले सो निहायत बुरी चले बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे पर क्या करें जो काम न बे-दिल-लगी चले लैला का नाक़ा दश्त में तासीर-ए-इश्क़ से सुन कर फ़ुग़ान-ए-क़ैस बजा-ए-हुदी चले नाज़ाँ न हो ख़िरद पे जो होना है हो वही दानिश तिरी न कुछ मिरी दानिश-वरी चले दुनिया ने किस का राह-ए-फ़ना में दिया है साथ तुम भी चले चलो यूँही जब तक चली चले जाते हवा-ए-शौक़ में हैं इस चमन से 'ज़ौक़' अपनी बला से बाद-ए-सबा अब कभी चले
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