Lyrics

दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या ज़ख़्म के भरते तलक नाख़ुन न बढ़ जावेंगे क्या? हज़रत-ए-नासेह गर आवें, दीदा-ओ-दिल फ़र्श-ए-राह हज़रत-ए-नासेह गर आवें, दीदा-ओ-दिल फ़र्श-ए-राह कोई मुझ को ये तो समझा दो कि समझावेंगे क्या? गर किया नासेह ने हम को क़ैद, अच्छा यूँ सही ये जुनून-ए-इश्क़ के अंदाज़ छुट जावेंगे क्या? ख़ाना-ज़ाद-ए-ज़ुल्फ़ हैं, ज़ंजीर से भागेंगे क्यूँ? हैं गिरफ़्तार-ए-वफ़ा, ज़िंदाँ से घबरावेंगे क्या? है अब इस मामूरे में क़हत-ए-ग़म-ए-उल्फ़त असद है अब इस मामूरे में क़हत-ए-ग़म-ए-उल्फ़त असद हम ने ये माना कि दिल्ली में रहे खावेंगे क्या?
Writer(s): Mirza Ghalib, Mian Yousaf Salahuddin Lyrics powered by www.musixmatch.com
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