Lyrics

कैसी है ये मेरी दास्ताँ? जागे हैं हम, सोए तुम भी कहाँ धुँधले से हैं क़ाग़ज़ पर वो निशाँ कैसी है ये दास्ताँ? मेरे लबों पे लिखा तेरे ख़तों का पता ज़ालिम ज़माने से भी छुपने से भी वो ना छुपा मेरे लबों पे लिखा तेरे ख़तों का पता ज़ालिम ज़माने से भी छुपने से भी वो ना छुपा घूमता हूँ मैं अब भी गलियों में उन ही, जहाँ भीड़ में जब खोया था तेरा और मेरा जहाँ दिल में थे वो, दिल ही में रह गए लफ़्ज जो कहने थे तुम्हें ना जाने कब कहानी बन गई कहानी ही रह गए मेरे लबों पे लिखा तेरे ख़तों का पता ज़ालिम ज़माने से भी छुपने से भी वो ना छुपा मेरे लबों पे लिखा तेरे ख़तों का पता ज़ालिम ज़माने से भी छुपने से भी वो ना छुपा
Lyrics powered by www.musixmatch.com
instagramSharePathic_arrow_out